Thursday 16 October 2014

टूटा सिपाही

- लावण्या  

एक था लड़का, ८ या कह सकते हैं कि लगभग ९ वर्ष का होने ही वाला था। उसकी साल गिरह आने में बस १ महीने का समय बाकी था। उसे घर में प्यार से सब 'मुन्ना' कह कर पुकारा करते थे। परन्तु, स्कूल में उसके सहपाठी दोस्त उसे मनोज ही कहते। मनोज के पास ढेरों खिलौने थे। उसके पापा वीरेन्द्र और मम्मी गिरिजा उसे तरह-तरह के मनपसंद खिलौने बाजार से खरीद कर ला देते थे। खिलौनों में मुन्ना के पास थे, रंग-बिरंगी कंचे, कई सारी छोटी कारें, एक फुटबाल, २ या ३ गेंद, इलेक्ट्रिक ट्रेन, कमाण्डो, गन, बोर्ड गेम-  लूडो, कैरम, लेगो, बैड  मिन्टन के रेकेट और कई सारे शटल और भी न जाने क्या-क्या मुन्ना के लिए उन्होंने खरीद लिया था। जब भी मुन्ना को समय मिलता, वह अपनी पसंद का खिलौना उठाता और खूब खेलता। हाँ अक्सर वीडीयो गेम्स में भी उसका समय अधिक बीत जाता। कभी कराटे की क्लास में भी मम्मी उसे ले चलती। जब मुन्ना घर पर रहता तब वह कोमिक्स भी पढता। कभी जिमखाना जाकर मुन्ना स्वीमिंग भी सीखता और अब तैराकी में भी मुन्ना कुशल हो गया है। सन्डे को पापा, मम्मी अच्छी पिक्चर लगी हो, तो उसे सिनेमा दिखलाने भी ले चले जाते थे। वहां पॉपकोर्न, आईसक्रीम और चोकलेट भी उसे अवश्य मिलतीं। स्कूल की पढ़ाई, खेल और मनोरंजन के अनगिनत साधन मुन्ना के लिए उपलब्ध थे। मुन्ना की ज़िन्दगी भरीपूरी थी और बड़े मज़े में चल रही थी। 

       अपने ढेरों खिलौनों में, मुन्ना को एक खेल सबसे ज्यादा पसंद था। उसके पास दस टीन के (पतरे के) बने हुए रंगीन सिपाही थे। सिपाहियों ने ऊपर लाल कोट, नीचे, काली पतलून पहन रखी हो इस तरह उन्हें रंगा गया था। उन सिपाहियों के सर पर बड़ा-सा, काला टॉप लगा हुआ था जो अंडे के आकार का लंबा गोल टोपा था। सिपाही बड़े सुन्दर शक्ल और आकार के थे। जब भी मुन्ने को समय मिलता तब वह मुड में आ जाता और अपने बिस्तर के एक तरफ राजा के पांच सिपाही और दुसरी ओर राणा के पांच सिपाही बिठलाता। ये खेल मुन्ने को बेहद अच्छा लगता था जो उसने अपने आप खोज निकाला था। खेल-खेल में, अक्सर,  राजा और राणा के सिपाहियों के बीच घनघोर लड़ाई छिड़ जाती। दोनों पक्ष बड़े बलवान और बहादुर थे। सो भई युद्ध भी भयानक होता ! पांच-पांच सिपाही अलग-अलग पैंतरे बदलते तब,  युद्ध और भी अधिक भीषण हो जाता। 

     मुन्ना कभी राजा के पक्ष से लड़ता तो कभी राणा के सिपाहियों को बचाव करने में मदद करता। कभी चिल्लाता 'ये मारा ..ले वो मारा ' ..'अरे बचो ..अरे बचाओ' अरे मरा रे ..अरे ये गिरा' ऐसी आवाजों को सुनकर मम्मी भी दरवाजे पर आ खडी होतीं और मुस्कुरातीं। यह खेल, खेलते हुए मुन्ना के दिमाग में ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती मानों इस युद्ध की बागडोर थामे, वही लड़ाई का संचालन कर रहा हो ! मुन्ना की कल्पना-शक्ति, मानों उसे लड़ाई के मैदान में अपने पंखों पर बिठला कर ले चलती। आहा ! मुन्ना तो सचमुच रण मैदान में उतर पड़ा है ! 

     यकायक मुन्ना के मनोलोक में सारे सिपाही जीवित हो गये और मुन्ना उन के संग अपने आप को खड़ा हुआ देखने लगा। यह सिपाही तो अब पतरे के माने टीन के न होकर सजीव दीखलायी पड़ने लगे ! 

            मुन्ना आश्चर्य से उनके चेहरों को देखने लगा। एक के मुँह पर ये बड़ी-बड़ी मूँछें हैं ! दुसरे के हाथ में उठी हुई संगीन माने गन है। सामने राणा की फ़ौज से एक सिपाही राजा के सिपाहियों से भिड़ने को उतावला हुआ सामने भागा आ रहा है और चिल्ला रहा है ...'फायर फ़ायर ' आग आग ' ..चौथा घुटनों के बल बैठ निशाना साध रहा है, तभी बन्दूक से एक गोली निकल कर पाँचवें सिपाही की कनपटी के नज़दीक से सुं ...सूँ ..आवाज़ करती गुजर जाती है। ' धाँ य '..का ज़ोरदार स्वर सुनते ही मुन्ना उस पाँचवें सिपाही की और मुड़कर देखने लगा और यह क्या ! पांचवा सिपाही तो घायल हो गया ! उसके दाहिने पैर पे गोली लग गयी थी !  घाव से बेतहाशा खून बहे जा रहा था। सिपाही जमीन पर पड़ा हुआ अब कराहने लगा। 

        अब तो कल्पना-लोक से उतर कर मुन्ना उछल कर अपने सिपाहियों की ओर दौड़ा। उसे अपने मन के आईने में देखी कहानी सच लगने लगी। उसका दिल ज़ोरों से धड़कने लगा।

      अब वह सच की दुनिया में लौट आया था। मुना ने आहिस्ता से औन्धे मुँह,  पीछे की ओर गिरे हुए, उस पांचवे सिपाही को उठा लिया। परन्तु उसकी आँखें विस्मय से फ़ैल गईं ! दिल अब भी तेज धड़क रहा था। आश्चर्य ! इस सिपाही की टाँगें, घुटनों के पास से सचमुच टूट गयी थी। यह देख कर अब मुन्ना सचमुच परेशान हो गया। 

    मुन्ने ने अपना टूटा सिपाही, गोद में उठाकर रख लिया। मुन्ना की आँखों से टप टप आंसू बह चले। उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह अब क्या करे ! किससे कहे ? उसे पता था कि मम्मी-पापा उस की किसी भी बात को समझेंगें नहीं। बड़ों की दुनिया बच्चों की दुनिया से अलग होती है। यह बात मुन्ना जानता था। परेशान मुन्ने को कमरे के दरवाजे से देख रही माँ गिरिजा जी उसी समय कमरे के भीतर आ गयीं। 

          पहले तो उन्होंने कमरे में चारों तरफ फ़ैली चीजें बटोर कर उन्हें सही जगह पर रखना शुरू किया। टूटे सिपाही को थाम कर बैठे मुन्ना पर अब माँ की निगाह पड़ी। 

        टूटे सिपाही को देख कर गिरिजा माँ कुछ सोच में पड गयीं। माँ ने अपना सर हिलाया और समीप आयीं तो माँ की साड़ी का नर्म आँचल मुन्ना के सर पे लहरा गया। माँ ने पूछा- 'मुन्ना ! क्या हुआ बेटा ? ' 
    माँ के ममतामय स्वर से मुन्ना सम्हला उस ने सजल आँखों से माँ की ओर देख कर कहा, ' मम्मी देखो न मेरे बहादुर सिपाही को चोट लग गयी! 'माँ ने मुन्ने के हाथों से टूटा सिपाही उठा लिया और कहा, ' अरे मुन्ने तू चिंता न कर ..बहुत खेल हो गया। चलो खाना तैयार है !  पापा हमारा इंतज़ार कर रहे हैं। तुम हाथ धोकर जल्दी से आ जाओ' इतना कहते हुए माँ ने उस टूटे सिपाही को खिड़की के पास उठाकर रखते हुए कहा 'अब ये बहादुर सिपाही कुछ देर आराम करेंगें।' 

           भोजन समाप्त करने के बाद मुन्ना फ़ौरन अपने कमरे में आ पहुँचा और अपने घायल सिपाही के पास जा कर मुन्ना खड़ा हो गया। उसने देखा वह टूटा सिपाही बेबस निगाहों से उसी को ताक रहा था। मुन्ने ने कमरे में इधर-उधर देखा और टूटी हुई टांग का हिस्सा उसे दिखलायी दिया तो उसे भी उठाकर उसने खिड़की पर रख दिया। फिर अपने टूटे सिपाही के पास मुँह लाकर फुसफुसाकर वह बोला, 'अब तुम भी आराम करो अच्छा मेरे बहादुर सिपाही ! मैं अब सोने जा रहा हूँ ! कल स्कूल है न जल्दी उठना है'  इतना कह कर मुन्ना बिस्तर पर जा कर लेट गया। उदास मुन्ना को नींद आने में आज देर हो रही थी। पर आखिरकार वह बच्चा था, सो गया।   
          
मुन्ने की आँख लगते ही उसे यूँ लगा मानों वह तेज हवा के संग कहीं दूर उड़ा जा रहा है। फिर धमाके से वह नीचे गिर पडा। गिरा भी तो पानी में ..ये तो अच्छा था कि मुन्ना स्वीमिंग करना जानता था। पानी की तेज धारा मुन्ना को घसीट कर नीचे की ओर ले चली। मुन्ना ने साँस रोक ली। वह नीचे की ओर चला जा रहा था। वह और नीचे सरकने लगा। इसी तरह मुन्ना तैरता हुआ बहुत दूर चला गया। डर के मारे अब तो मुन्ना ने कस कर आँखें बंद कर लीं। फिर कुछ मिनटों के बाद आँखें आहिस्ता से खोलीं तो देखा वह किसी नई दुनिया में आ पहुँचा था।  

         'अरे ये मैं कहाँ आ गया ? 'मुन्ना सोचने लगा। उसने देखा तो चारों तरफ नीले पानी के अन्दर उसे सब कुछ शंखों और सीपियों से बना दिखलाई दिया। मुन्ना के ऊपर, नीचे, लाल, सुनहरी, हरी, नीली, पीली, नारंगी, काली रूपहली, अरे हर रंग की मछलियाँ तैर रहीं थीं। सामने बड़ी सीपी का मुँह आधा खुला हुआ था जिस पर आधी लडकी जिसके नीचे के हिस्से में मछली जैसी पूँछ थी, वैसी जलपरी या अंग्रेज़ी में जिसे 'मरमेड' कहते हैं वह  आराम से वहाँ बैठी थी।  

    मुन्ना को देखते ही वह जलपरी/ मरमेड मुस्कुराई। उसके सुनहरे बाल पानी पर लहरा रहे थे और उसकी भूरी भूरी आँखें मुन्ना को देखे जा रहीं थीं। उसी वक्त तैरती हुईं और भी बहुत सारी सुन्दर जलपरियाँ भी वहाँ आयीं। सभी बड़ी सुन्दर थीं। वे तैरती हुई, मुस्कुराती हुई आयीं और मुन्ना का हाथ थामे अपने राजा के पास ले चलीं। 
    एक जलपरी मुन्ना से बोली, ' मुन्ना , ये हमारे राजा जी वरूण देव हैं। 'लोग इन्हें' नेपच्यून भगवान भी बुलाते हैं ! वे जल सागर, दरिया, समंदर सभी के स्वामी हैं। जल में जितने भी जीव जंतु और प्राणी रहते हैं वे वरूण देवता को अपना पिता मानते हैं।  

          इतना सुनते ही, मुन्ना ने झट से वरूण देवता को नमस्ते किया। उसने देखा के वरुण देवता एक बहुत बड़ी सोने के रंग की चमचमाती सीप से बने राज सिंहासन पर विराजमान हैं। उनके ठीक सामने टेबल की जगह बहुत बड़ा विशाल मोती चमक रहा है। मोती में से कभी गुलाबी, कभी सुनहरी और कभी नीली और पीली रोशनी निकल रही है और चारों तरफ प्रकाश फैल रहा है। चाँदनी जैसी आभा आस-पास झिलमिला रही है। मुन्ना ऐसा सुन्दर दृश्य देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने झुककर जैसे माँ ने उसे भगवान् जी की पूजा करते वक्त सिखलाया था उसी तरह अदब के साथ वरुण देवता को प्रणाम किया। मुन्ना बोला ' नमस्ते वरुण देवता।'
वरुण देव ने मुस्काराते हुए कहा ' क्यों मनोज, कैसे हो बेटा ? '

मुन्ना बोला 'अरे वाह ! आप को मेरा नाम भी मालूम है ! क्या आप मुझे पहचानते हो अंकल ? 
वरूण देव ने कहा, ' मुन्ना हम तुम्हें अच्छी तरह पहचानते हैं और हमे ये भी पता है कि तुम बड़े स्मार्ट हो ! अच्छे लडके हो। हम और भी कई सारी बातें जानते हैं। पर तुम बताओ, आज हमारी नगरी में कैसे आना हुआ?'
मुन्ना बोला ' वरुण देवता जी ! मैं नहीं जानता, मैं यहाँ कैसे आ गया ! मैं तो सो रहा था, सच्ची ..और आँखें झपकते ही न, पता नहीं कैसे, मैं यहाँ आ गया ! ये पानी का दरिया बहाकर मुझे आप के पास ले आया ...'
वरुण देव बोले ' बेटा, आज तुम बहुत उदास थे ना, सो हम ने तुम्हें यहाँ बुलाया है। जब भी तुम्हारे जैसे प्यारे प्यारे छोटे, बच्चे, उदास होते हैं, तब हमारे महल में बंधी एक घंटी टन टन कर बजने लगती है। हमें पता लग जाता है कि आज कौन बच्चा उदास है ! घंटी के पास एक शीशे में तुम भी दिखलाई दिए थे सो हमने बुला लिया'
मुन्ना बोला ' वरुण देव, आप को तो सब पता है। आज मेरे बहादुर सिपाही की टाँग टूट गयी न, उस की टूटी हुई टांग देख, मैं सेड हो गया। आज न मैं इसीलिए उदास हूँ ! '
वरुण देव बोले ' मुन्ना हम जानते हैं आप बड़े अच्छे हो। गुड बॉय हो ! अरे सुनहरी जलपरी। मेरी जादुई छड़ी लाना तो .. मुन्ना तुम चिंता मत करो ! मैं तुम्हारे सिपाही की टाँग पहले जैसी जोड़ कर उसे बिलकुल ठीक कर दूँगा ! '
मुन्ना खुश हो गया ताली बजा कर बोला ' सच ? '

तभी सुनहरी जलपरी सोने की छड़ी जिस पर एक चमकता हुआ लाल सितारा भी लगा हुआ था उसे वरुण देवता के सामने ले आयी और वरुण देवता को जादू की छड़ी थमा दी। तब वरुण देवता ने छड़ी को अपने एक हाथ में उठाकर उसे गोल-गोल घुमाया और बोले .. ' छम छम छाम छूं ..कर दे सही सिपाही की टाँगे तू' .
फिर मुन्ना से कहा 'लो भई मुन्ना अब ये बहादुर सिपाही ठीक हो जाएगा ' 
मुन्ना के आश्चर्य का ठिकाना न रहा वह बोला ' सच ! आपने मेरे सिपाही को ठीक कर दिया ! अब मैं बहुत खुश हूँ ..' थैंक यू '   और इतना कहते ही मुन्ना पानी के भीतर से ऊपर उठने लगा और ऊपर… और ऊपर उठता गया ...  .. अब मुन्ना खुश हो कर तालियाँ बजाने लगा। 
 ' हे ... हे .... वाह वह ..'.... बोल रहा मुन्ना नींद में भी हँसने लगा और उछलने लगा और ऐसा करते हुए मुन्ना अपने बिस्तर से धड़ाम से नीचे गिर पडा ! 
उस के पलंग के साथ लगी नरम कालीन पर गिरने से उसे चोट नहीं आयी। होश संभाल कर मुन्ना जमीन से उठा और सबसे पहले उसकी नज़र खिड़की पर रखे टूटे सिपाही पर गयी। 
मुन्ना ने देखा तो 'अरे ! टूटा सिपाही तो वहाँ नहीं था ! कहाँ चला गया ? अब तो मुन्ना ' माँ माँ ' चिल्लाता हुआ अपने कमरे से बाहर भागा। जोरों से पुकारते हुए पूछने लगा ' मोम  ..मोम   ..तुम कहाँ  हो मम्मा  ?   
गिरजा माँ ने उत्तर दिया ' मुन्ना ..मैं यहाँ रसोई  में हूँ, नाश्ता लगा रही हूँ, क्या बात है बेटा ? ' 
मुन्ना पास जाकर बोला ' मम्मा आपने मेरा टूटा सिपाही देखा है? कल रात खिड़की पर रखा था पर वो वहाँ नहीं है '
माँ ने हँसते हुए कहा ' जा कर, ठीक से देख !  खिड़की पर नहीं तो शायद फर्श पर गिर पड़ा होगा ! '
मुन्ना बोला ' अच्छा मैं देखता हूँ वहां तो देखा ही नहीं ! ' और मुन्ना फिर कमरे की ओर भागने ही वाला था तो माँ ने याद दिलाते हुए कहा ' अरे ब्रश भी कर लीजो और नहाना भी तो है ' ..
उसी समय मुन्ने के घर के दरवाजे की घंटी दनदना कर बजने लगी। 
आहो डाक्टर चाचा आये होंगें सोच कर मुन्ना ने जा कर फ़ौरन दरवाजा खोल दिया। डाक्टर आशुतोष बेनर्जी सुबह शाम मुन्ना के दादा जी शिवनारायण जी की तबियत की जांच करने आया करते थे। वही दरवाजे के पास चौखट पर खड़े थे और वे हाथों में उनका बड़ा सा काला बैग भी थामे हुए थे।

कल रात भी  वे मुन्ना के सो जाने बाद आये थे और आज सुबह सुबह फिर आये थे। उनका यही नियम था। 
डाक्टर चाचा ने कहा ' गुड मोर्निंग मनोज बेटे ! कैसे हो ? ' मुन्ना ने नमस्ते करते हुए कहा ' मैं ठीक हूँ डाक्टर अंकल। '
डाक्टर चाचा बोले ' अरे भई मुन्ना देखिये, क्या ये सिपाही आपका है ? आज सुबह हमारी क्लीनिक की मेज पर जनाब खड़े थे। शायद अपनी जांच पड़ताल करवाने आयें हों ! मैं यहीं आ रहा था तो इन्हें भी साथ ले आया। संभालो अपने सिपाही को ! ' ये कहते हुए डाक्टर चाचा ने सिपाही, मुन्ना के हाथों में थमा दिया ! मुन्ना आश्चर्य से दो टांगों पर खड़े अपने सिपाही को देखता ही रह गया ! और खुशी के साथ उछल कर बोला ,
' मम्मा ..देखो तो मेरा सिपाही ठीक हो गया ! उसकी टांगें टूटी नहीं ..वाह वाह वाह ! ' 
     मुन्ना को प्रसन्न देख कर गिरिजा माँ और डाक्टर बेनर्जी हल्के से एक दुसरे की और देख कर मुस्कुराने लगे।

     मुन्ने को नहीं पता था की, डाक्टर चाचा, डाक्टरी करने के साथ  पुरानी,  टूटी फूटी चीजों को रिपेयर करना भी बखूबी जानते थे। ये उनकी होबी थी। उनका शौक था। टूटी-फूटी चीजों को जोड़ कर उन्हें दुबारा सही करने का अच्छा तजुर्बा डाक्टर चाचा को था। मुन्ना की माँ यह बात जानतीं थीं। कल रात जब डाक्टर बेनर्जी दादा जी की जांच करने आये थे तब माँ ने इस टूटे सिपाही को उठा कर डाक्टर बेनर्जी क हाथ में रखते हुए पूछा था,  'डाक्टर साहब, देखिये तो, इस टूटे सिपाही की टांगें आप से, ठीक हो पाएंगीं? '
डाक्टर बेनर्जी ने हँसते हुए कहा था ' लो जी ! अब तो हम खिलौनों के डाक्टर भी बन गये ! भाभी जी आप फ़िक्र ना करें। इस सिपाही की टूटी हुई टांगें बड़ी आसानी से जुड़ जायेंगीं ! आप मुन्ने से कुछ न कहना। सुबह हम मुन्ने को एक सुखद भेंट देंगें और मुन्ने को खुश हुआ देखेंगें। ' 
     दादा जी ने मुस्काराते हुए अपनी बात कही ' डाक्टर साहब, हम सभी ईश्वर के खिलौने हैं। आप हमारे परिवार के सदस्य हैं। आप के उपकार हम सदैव याद रखेंगें। आप जैसे डाक्टर बेटे, ईश्वर हर परिवार को दें मैं यह प्रार्थना करता हूँ। '

     अब डाक्टर बेनर्जी कुछ धीमी आवाज़ में बोले 'दादा जी आप मुस्कुराते रहिये और हम सब आपको मुस्कुराता देख प्रसन्न होते रहें। मैं, ईश्वर से यही माँगता हूँ।' और अपना डॉकक्टरों वाला बेग उठाकर घर से बाहर जाने के लिए वे निकल पड़े थे ।

        आज दिन भर मुन्ना को स्कूल में दोस्तों के साथ खेलते हुए भी न जाने क्यों उसके डाक्टर बेनर्जी चाचा की याद आती रही ! मुन्ना सोचता रहा ' अरे डाक्टर चाचा की शक्ल वरुण देवता से कितनी मिलती है ! कितने सेम दिखते हैं दोनों ...!'

 - लावण्या

Thursday 23 June 2011

सगुनी का सपना

-डॉ० जगदीश व्योम

राजस्थान के पश्चिमी इलाके में एक स्थान है सूरतगढ़  ईप्सा के पापा का स्थानांतरण यहीं के केन्द्रीय कृषि फार्म में हुआ है ईप्सा को यहां के केन्द्रीय विद्यालय में प्रवेश मिल गया।  ईप्सा कक्षा पांच की छात्रा है दो-चार दिन तो ईप्सा की कक्षा की लड़कियां उससे दूर-दूर रहीं लेकिन बाद में उससे दोस्ती हो गयी लड़कियों ने ही ईप्सा को बताया कि वह अपने टिफिन की सुरक्षा करे। कोई बच्चा खाना चुरा कर खा जाता है कभी किसी का खाना गायब हो जाता है तो कभी किसी का। बच्चे इस ताक में रहते हैं कि खाना चोर को रंगे हाथ पकड़ा जाये।

      मैले-कुचैले कपड़े पहने एक छोटी सी लड़की विद्यालय के तारों की बाउन्ड्री के पास घूमती रहती है। बच्चों ने अनुमान लगाया कि यही खाना चुराती होगी। बच्चों ने अपनी कक्षा की खिड़की में से उसे दूर से कक्षा की ओर टकटकी लगाकर देखते हुए देखा है। कई बार बच्चों ने उसे पकड़ने की कोशिश की तो वह भाग गई।

    एक दिन इन्टरवेल में सभी बच्चे अपनी-अपनी कक्षा से बाहर आकर खेल रहे थे। कुछ अपने दोस्तों के साथ खाना खा रहे थे तभी तारों की फेंसिंग के पास बने कूड़ेदान की दीवार से सटी बच्चों की भीड़ को ललचाई दृष्टि से देख रही उस लड़की को किसी बच्चे ने देख लिया। चार-पांच बच्चे हाथों में पत्थर लेकर उस लड़की तरफ दौड़े । बच्चों को अपनी तरफ दौड़ते हुए देख वह भागने को हुई तभी रोहित ने  एक पत्थर उस लड़की की ओर फेंका जो उसके माथे पर लगा। पत्थर लगते ही खून का फब्बारा छूटा और वह लड़की बेहोश होकर वहीं गिर पड़ी।

    बच्चों की भीड़ जमा हो गई ईप्सा ने जब भीड़ लगते देखी तो वह भी अपनी सहेलियों के साथ वहां पहुँच गई।

    ”खाना चोर पकड़ी गई..........खाना चोर पकड़ी गई.............” - बच्चे जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। लड़की बेहोश पड़ी थी और उसके माथे से खून निकल कर बह रहा था। बच्चे खुश हो रहे थे। ईप्सा ने जब यह दृश्य देखा तो उससे न रहा गया। जल्दी से वह उस घायल लड़की के पास पहुंच गई उसने अपने रूमाल से उसका माथा कस कर बाँध दिया और अपनी सहेलियों रानी, दक्षा, अंशु, और गीता से कहा आओ! हम सब मिल कर एम०आई०रूम ले चलते हैं।

    गीता बोली ”ईप्सा यह तो खाना़ चोर लड़की है मुश्किल ये पकड़ी गई और तुम कहती हो कि इसे एम० आई० रूम ले चलो ?”

    ”गीता यह लड़की खानाचोर है या नहीं यह बाद में तय होता रहेगा अभी इसकी जान खतरे में है इस लिए इसे तुरंत डॉक्टर के पास ले चलते हैं तुम सब इसे ले चलने में मेरी सहायता करो इसका खून इसी तरह बहता रहा तो यह बेचारी मर जायेगी।”

             बच्चों की भीड़ खून देख कर वहाँ से खिसकने लगी थी। ईप्सा अपनी सहेलियों की सहायता से उस लड़की को डाँक्टर के पास लेकर पहुची। डाक्टर ने उसे तुरन्त इन्जेक्शन दिया। उसके माथे का घाव साफ किया। माथा काफी फट गया था इसलिए डाक्टर को तीन चार टाँके लगाने पड़े। डाक्टर ने जब तक उसका उपचार किया तब तक ईप्सा अपनी सहेलियों के साथ वहीं बैठी रही। डॅाक्टर ने ईप्सा से कहा- ‘‘ ईप्सा तुम इसे शीघ्र मेरे पास न ले आतीं तो इस गरीब लड़की के जीवन को खतरा हो सकता था। अब यह बिलकुल ठीक है। मैंने इसे दबा दे दी है। एक सप्ताह में इसका धाव ठीक हो जाएगा।   

           ईप्सा उस लड़की को देखने प्रतिदिन अस्पताल के एम.आई.रूम में जाती। वह लड़की हाथ जोड़कर बार बार कहती कि ‘‘ मैंने कभी खाना नहीं चुराया...... मैं चोर नहीं हूँ। ’’

    ‘‘अगर तुम चोर नहीं हो तो फिर कक्षा के पास खड़े होकर क्या देखती रहती हो? और बुलाने पर भाग जाती हो। सच-सच बताओ आखिर तुम कौन हो और क्यों रोज आती रही हो?” -ईप्सा ने उस लड़की से पूछा ।

     ,,  दीदी मेरे बापू बहुत गरीब हैं। पास के गाँव में रहते हैं। मुझे कूड़ा-कचरा, बोतलें, मोमियाँ, आदि बीनने के लिए यहाँ बापू भेजते हैं। मेरा मन कूड़ा-कचरा बीनने में नहीं लगता मुझे आप सब बहुत अच्छे लगते हो मेरी भी इच्छा हैं कि मैं भी पढूँ, आप जैसी ड्रेस पहनूं, बैग लेकर स्कूल आऊं और कुर्सी पर बैठूँ।  आप सब को पढ़ते, खेलते देखकर मुझे बहुत सुख मिलता है। इसलिए मैं तारों के पास खड़ी होकर देखती रहती। मैंने चोरी कभी नहीं की।” -लड़की कहते-कहते सपनों में खो गई।

    ”फिर तुम भाग क्यों जाती थी?” -ईप्सा ने पूछा।

    ”मैं डर जाती थी कि मुझे आप लोग पकड़कर मारेंगे। इसलिए किसी को अपनी ओर आते देखकर मैं भाग जाती थी। . . .  . दीदी  इस बार आपने मुझे बचा लिया अब मैं कभी नहीं आऊँगी. . . . मुझे क्षमा कर दो ईप्सा दीदी।” - कहते-कहते लड़की सुबक-सुबक कर रोने लगी।

    ”अरे तुम तो रोने लगी। . . . . अच्छा तुम्हारा नाम क्या है?” -ईप्सा ने पूछा

    ”सगुनी, सुगनी है मेरा नाम” -लड़की ने कहा।

    ”तुम्हें जब स्कूल इतना अच्छा लगता है तो फिर एडमीशन क्यों नहीं करवा लेती हो अपने बापू से कह कर” - ईप्सा ने सगुनी से कहा ।

    ” हुंहँ ! मुझे कौन एडमीशन देगा दीदी ! हम लोग गरीब हैं न, मेरे बापू के पास पैसे नहीं हैं कि किताबें खरीद सकें और कपड़े बनवा सकें।” -सगुनी ने उदास मन से कहा।

    ”अच्छा ! सगुनी तुम्हारे लिए किताबें मैं ला दूँगी मेरी सभी किताबें रखीं है उनसे तुम पढ़ लेना।” अंशु बोली। दक्षा कहने लगी कि सगुनी के लिए ड्रेस मैं बनवा दूँगी अपने पापा से कह कर।

    डॉंक्टर अजय इन छात्राओं से पहले ही प्रभावित हो चुके थे इनकी बातें सुनी तो वे अपनी कुर्सी से उठकर लड़कियों के पास आ कर खड़े हो गये। ईप्सा की पीठ थपथपाते हुऐ बोले ईप्सा तुम तो बहुत अच्छी बेटी हो। सगुनी को तुम लोग पढ़ाना चाहती हो यह बहुत अच्छी बात है। जब तुम लोग ड्रेस और किताबों की व्यवस्था कर रही हो तो फिर सगुनी के एडमीशन का तथा शेष खर्चों का जिम्मा मैं लेता हूं।” -डॉक्टर अजय की बात सुन कर लड़कियाँ खुशी से झूम उठीं सगुनी के  चेहरे पर खुशी छा गई उसे विश्वास नहीं हो पा रहा था कि वह भी केन्द्रीय विद्यालय में पढ़ सकेगी।

    डॉक्टर अजय ने कहा, ”सगुनी जैसी अनेक बालिकाएँ हैं जो पढ़ना चाहती हैं पर अभाव के कारण पढ़ने से वंचित रह जाती हैं। और हम सब बड़े लोग इन्हें उपेक्षा और घृणा की दृष्टि से देखते रहते हैं। हम कुत्तों को तो अपनी कारों में घुमाने के लिए लालायित रहते हैं पर सगुनी जैसी बच्चियों की थोड़ी सी सहायता करने में कतराते हैं।  ईप्सा तुमने और तुम्हारी सहेलियों ने सगुनी के बारे में जो सोचा है उसे पूरा करने मैं पूरी सहायता करूँगा”

    ईप्सा को महसूस हो रहा था कि उसने वास्तव में कुछ अच्छा कार्य किया है। डॉक्टर अजय ने अपनी देख -रेख में सगुनी का एडमीशन करा दिया। सगुनी नई डेªस पहनकर विद्यालय आयी तो उसे लग रहा था कि दुनिया भर की खुशी उसे मिल गई है।

    स्कूल ड्रेस में सजी धजी सी सगुनी प्रार्थना सभा में सावधान विश्राम करते देखकर ईप्सा की आंखों में खुशी के आंसू छलछला आये। ईप्सा सोच रही थी उस जैसे छोटे बच्चे भी किसी सगुनी के सपनों को साकार करने में उसकी सहायता कर सकते हैं। ईप्सा के रोम रोम से खुशी झलक रही थी।

-डा० जगदीश व्योम